धानुक का इतिहास

भारत में धानुक बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में भी पाए जाते हैं। कई जगह धानुकों को मंडल, जसवाल कुर्मी के नाम से भी जाना जाता है।

धानुक जाती का मुख्य काम धनुष बाण चलाना, धनुष बाण बनाना और खेती बारी (कृषि) करना, सेना में धनुष बाण धारण करते थे , धनुषधारी धानुक कहलाते थे, यह शब्द संस्कृत के शब्द धनुष्क के आया है। वे मुख्य रूप से बिहार में रहते है। ब्रिटिश भारत जनगणना १८८१ की रिपोर्ट के अनुसार धानुक जाती की संख्या लगभग ६६७४८२ थी धानुक जाती सर एच इलीअट की अनुसार बिहार से दुसरे प्रांत में आये हुए लोग हैं। पुरे भारत में धानुक जाती का आबादी लगभग 7,500,000 है।

ध्येय

संस्था का मुख्य उद्देश्य गरीब बच्चों का शिक्षा , गरीब कन्याओ का विवाह , दहेज़ मुक्त अभियान, गरीब लोगों को सरकारी सुविधा मुहैया करना, बाल विवाह पर रोक, गरीब बीमार असहाय का मदद करना इत्यादि ।

हमारे आदर्श

लक्ष्य

मैं अपने समाज की युवा पीढ़ी से निवेदन करता हूँ कि हम अपने समाज को स्वस्थ व शिक्षित बनाये जिससे आने वाली पीढ़ी प्रभावशाली, ज्ञानी, वैभवशाली व तेजस्वी हो जिससे समाज में नवीन प्राणों का संचार हो । हम एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते है जो सशक्त हो क्यूँकि हमारे चरित्र व समाज से ही देश का निर्माण होता है । और अगर मार्गदर्शन समाज के वरिष्ट और बुद्धिजीवियों द्वारा किया जाये तो एक सुद्रढ़ समाज का निर्माण हो सकता है । आज समाज को नई दिशा देने की जरुरत है अगर हम आज भी इस समाज को कुछ नहीं दे पाते है तो समाज में हमारा जन्म लेना व्यर्थ होगा अत: आप संकल्प करे एक नए और ऊर्जावान समाज के निर्माण का ।